Saturday, 16 September 2017

मेरी कहानी maharban Ansari

*इंसानियत# आज भी जिन्दा है

आप सभी की दुवाओ से प्रवेज़ %इस्लाम नाम का बच्चा मिल गया है दोस्तो मे आपको आज एक ऐसे इंसान से के बारे बताता जिसकी इंसानियत की वजह से  यह बच्चा अपने माँ बाप से मिल पाया चलो आब बात करते है प्रवेज़ की यह बच्चा 9/9/2017 को सुबह 10 बजे घर से चला गया शाम तक बच्चा घर वापस नही आया तो घर वाले परेशान हो गए सभी रिश्ते दारो से फ़ोन करके पता किया नही मिला इस बच्चे की माँ का रो रो कर बुरा हाल था  इस के घर वालो से मैंने पुछा आखिर ऐसा क्या हूआ जो घर से चला गया बच्चे के पिता इस्लाम ने बताया  आगे पढना नही चाहता  मैंने पूछा किसी ने मारा तो नही इस्लाम भाई ने कहा ऐसी कोई बात नही ह्ई फिर लगातार  ढुंढने पर भी नही मिला 13 तरिक क़ी शाम को एक कॉल आया कपूरी गांव से फोन पर जो आदमी था उसने अपना परिचय मुहम्मद जनिशार बताया और कहा आपका बेटा मेरे पास है आप आकर ले जाओ नही तो कल में आपके पास लेकर आऊंगा बस फोन आत घर वालो की खुशी का ठीकाना ना रहा फिर हम सब शाम को ही निकल लिए कपूरी गांव  जो सहारनपुर जिले के अमबेहटा पीर से 7 किलोमीटर पड़ता हम है शाम को कैराना से 7 बजे पाँच लोग मुस्तफा भाई इस्लाम बच्चे का पिता मेहरबान अंसारी एक भाई नईम मुस्तक़ीम भाई हम रात को दस बजे गाँव पाउचे घर पर पोछते ही जनिशार भाई ने हमारा स्वागत किया एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद मैंने पूछा जनिशार भाई यह आपके घर तक कैसे पौछा जनिशार भाई ने बताया मे ट्रक चलाता हु मे सहारनपुर होटल पे खाना खाने के लिए गया मे अक्सर वहा जाता हु मैने होटल वाले से पूछा भाई यह बच्चा किसका है होटल वाले ने पहले तो गोल मोल कर के बताया फिर मैंने सख्ती से पूछा तो उसने कहा यह बच्चा आज ही आया है आज शाम तक के पैस मैंनेे इसको दे दिये है फिर मैंने इसका एड्रेस मालूम किया इसने कुछ नही बताया फिर मे परेशान हो गया ना जाने किसका बच्चा है इसके घर वाले परेशान होंगे फिर मैंने इस बच्चे को इसके घर वापस पउचने की ठानी होटल वाले से मैंने बात करके इसको घर ले आया मेरी घर वाली ने पूछा मैंने पूरी बात बताई मेरा बेटा हिदायत भी खुश हुवा बोला अब हम दो भाई हो गए पूरी बात खत्म होते ही इतने मे आवेश भाई हाथ में चाय की ट्रे लिए खड़े थे आवेश भाई ने हम सबको चाय पिलाइ चाय पिने के बाद हम बच्चे को लेकर चलने लगे  तो जनिशार भाई का लड़का हिदायत रोने लगा अब्बु भाई को ना जाने दो रात के 11 :30 बज चुके थे फिर हम सब से मिल  कर वापस घर चल दिए इस कहानी को लिखने का मेरा मकशद जनिशार भाई की बात को सबके सामने लाने का था अगर कोई गलती हो गयी हो तो माफ करना मैंने पहली बार कोई कहानी लिखी है अगर आपको सही लगे तो जरुर बताना
मेहरबान अंसारी maharban Ansari


No comments:

Post a Comment