Tuesday, 13 June 2017

गोरखपुर : मेरा नाम ‘ठाकुर विनय कुमार सिंह’ था अब मुझे ‘मुहम्मद इस्लाम ठाकुर’ के नाम से जाना जायेगा!

गोरखपुर : मेरा नाम ‘ठाकुर विनय कुमार सिंह’ था अब मुझे ‘मुहम्मद इस्लाम ठाकुर’ के नाम से जाना जायेगा!

Posted by newseditor

दौरे हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के बाद 
है इब्तिदा हमारी तेरी इन्तिहा के बाद 
क़त्ले हुसैन असल में मिरगे यजीद है 
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद 
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मज़हबे इस्लाम ने दुनियां को आज की सबसे खूसबूरत तहज़ीब दी है, मुसलमानों ने दुनियां को विग्यान, अलजेब्रा, चाँद सूरज की गर्दिश, ज़मीन का आकार, मेडिकल साइंस, आयुर्वेद का खज़ाना और न जाने क्या क्या दिया है, हाल के समय में अरब के कई देशों में चल रहे खून खराबे को लेकर दुनियां के देश और भारत में कट्टरपंथी सवाल उठाते हैं ये जानते हुए भी कि अरब में जंग अमेरिका और रूस लड़ रहे हैं, शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी युद्ध जारी है बस मैदान बदल गया है| भारत के कट्टरपंथी सवाल करते हैं कि मुसलमानों के कारण आतंकवाद है और इस्लाम धर्म आतंकवाद की शिक्षा देता है, जबकि ये कट्टरपंथी खुद भी जानते हैं कि आतंकवाद के क्या कारण हैं और कौन आतंकवाद फैला रहा है मगर मुस्लिम दुश्मनी के कारण इनको सच्चाई कबूल करने में समस्या है!

हकीम लुकमान इस धरती पर आयुर्वेद के जनक हैं, उनका समय कितना लम्बा था ये इस बात से समझा जा सकता है कि लुकमान हकीम की अपने जीवन में 400 से ज़ियादा नबियों से मुलाकात रूबरू हुई थी| अल्लाह ने उनके हाथ में ऐसा शिफा दिया था कि जिसको जो भी जड़ी बूटी दे दी वह उसकी बीमारी में काम आयी|

भारत में 760 साल तक मुस्लिम राज रहा और इस काल में कोई एक भी उदाहरण कोई एक भी इतिहासकार (संघी विद्वानों) को छोड़ कर नहीं दे सकता जहाँ मुस्लिम साशकों ने धर्म के आधार पर भेदभाव किया हो या धर्म के प्रचार का काम किया हो, फिर भी न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि दुनियां को कोने कोने में इस्लाम फैला है| इस्लाम के फैलाव का मुख्या कारण है रसूल अल्लाह की ज़ात, क़ुरआन की शिक्षाएं, मुसलमानों का चाल चलन!

ये एक खबर उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर से है जहाँ हिन्दू ठाकुर ने इस्लाम अपनाया है 
भाईयों पहले मेरा नाम ठाकुर विनय कुमार सिंह था 
गोरखपुर के बांस गाव से हूँ 
लेकिन अब मुझे भविष्य में मुहम्मद ईस्लाम ठाकुर के नाम से जाना जायेगा और हाँ मेरे इस्लामिक भाईयों से दरखास्त है कि भाईयो मुझे भी दिन की राह में जोड़े और मेरा वाटसब नम्बर है : 9557947800

Saturday, 10 June 2017

कल्कि अवतार” यानी पूरे ब्रह्मांड के मार्गदर्शक’ पैग़म्बर मुहम्मद साहब’ हैं : *पण्डित वेद प्रकाश*

*“कल्कि अवतार” यानी पूरे ब्रह्मांड के मार्गदर्शक’ पैग़म्बर मुहम्मद साहब’ हैं : *पण्डित वेद प्रकाश*

विशेष।कल्की अवतार और इस्लाम” भारत में छपने वाली किताब *”MUHAMMAD* IN THE *HINDU* SCRIPTURES जिसका हिन्दी अनुवाद “कल्की अवतार” के नाम से छापा गया इस किताब ने दुनिया भर में हल चल मचा दी है। इस किताब में बताया गया है कि हिन्दुओं की धार्मिक किताबों में जिस “कल्कि अवतार” यानी आखिरी अवतार का वर्णन है वह आखिरी पैगम्बर मुहम्मद S% अब्दुल्लाह हैं। इस किताब के लेखक अगर कोई मुसलमान होता तो शायद अब तक जेल में होता और इस किताब पर प्रतिबंध लग चुका होता । मगर इसके लेखक “पण्डित वेद प्रकाश” ब्राह्मण हैं और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबंधित हैं। वह संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान हैं। इन्होंने अपनी इस शोtjथपत्र को मुल्क के आठ प्रसिद्ध विद्वान पन्डितों के सामने प्रस्तुत किया, जो अपने विषय के विद्वान हैं। इन पन्डितों ने किताब के गहन अध्ययन और छानबीन के बाद ये स्वीकार किया है कि किताब में वर्णन किये गये सारे सुबूत उचित और मान्य हैं। इन्होंने अपनी शोध का नाम “कल्कि अवतार” यानी पूरे ब्रह्मांड का मार्गदर्शक रखा है। हिन्दुओं की प्रमुख धार्मिक किताब में एक विशेष मार्गदर्शक का उल्लेख है जिसे “कल्कि अवतार” का नाम दिया गया है। अपनी इस बात को प्रमाणित करने के लिए पण्डित वेद प्रकाश ने हिन्दुओं की पवित्र धार्मिक किताब “वेद” मैं से कुछ बातें सबूतों के साथ पेश की हैं

1—-“वेद” किताब में लिखा है कि “कल्कि अवतार” भगवान का आखिरी अवतार होगा जो पूरी दुनिया को रास्ता दिखाएगा।
2—वेद में उपलब्ध तथ्यों के अनुसार “कल्कि अवतार” एक रेगिस्तानी इलाके में पैदा होंगे और ये अरब का इलाका है जिसे सउदी अरब कहा जाता है।
3—पवित्र किताब में लिखा है कि “कल्कि अवतार” के पिता का नाम “विष्णु भगत” और माता का नाम “सोमानब” होगा। संस्कृत भाषा में “विष्णु” इश्वर के अर्थ में इस्तेमाल होता है और “भगत” का अर्थ भक्त हैं। इसी तरह अरबी भाषा में “विष्णु भगत” का मतलब अल्लाह का बन्दा यानी “अब्दुल्लाह” है और “सोमानब” का मतलब अमन है जो कि अरबी भाषा में “आमना” होगा और मुहम्मद के पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम आमना है।
4—वेद किताब में लिखा है कि कल्कि अवतार जैतून और खजूर का उपयोग करेगा। ये दोनों फल पैगम्बर मुहम्मद को बहुत पसंद थे।
5—-वो अपनी बात में सच्चा और करूणा से भरा हुआ होगा। मक्का में पैगम्बर मुहम्मद के लिए सच्चा और करूणामयी के शब्द इस्तेमाल किए जाते थे।
6—-वेद के मुताबिक “कल्कि अवतार” अपने सरजमीन के सुप्रसिद्ध खानदान में से होगा और यह भी पैगम्बर मुहम्मद के बारे में सच साबित होता है कि आप कुरैश के सुप्रसिद्ध कबीले में से थे जिसकी मक्का में बेहद इज्जत थी।
7—-हमारी किताब कहती है के भगवान “कल्कि अवतार” को अपने विशेष दूत के जरिए एक गुफा में पढ़ाएगा। इस मामले में ये भी सही है कि पैगम्बर मुहम्मद को एक विशेष दूत जिब्राईल के द्वारा हेरा नाम की गुफा मे पढाया।
8—-हमारी मान्यता के अनुसार भगवान “कल्कि अवतार” को एक तेज गति से चलने वाला घोड़ा देगा जिस पर सवार हो कर वह जमीन और सात आसमानों की सैर करेगा। पैगम्बर मुहम्मद ने “बुर्राक” नाम के घोडे पर आकाश का भ्रमण किया है।
9—-हमें विश्वास है कि भगवान “कल्कि अवतार” की बहुत मदद करेगा और उसे बहुत ताकत देगा— हम जानते हैं कि बदर की जंग मे अल्लाह ने पैगम्बर मुहम्मद की फरिश्ते भेजकर मदद फरमायीं।
10—-हमारी सारी धार्मिक खिताबों के मुताबिक “कल्कि अवतार” घुड़सवारी, तीरन्दाजी और तलवारबाजी में माहिर होगा।

पण्डित वेद प्रकाश ने इस पर जो व्याख्यान किया है वो बहुत महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य है वह लिखते हैं कि घोड़ों, तलवारों और नेजों का जमाना बहुत पहले गुजर चुका है। अब टैंक, तोप और मिजाइल जैसे हथियार इस्तेमाल में हैं लिहाज़ा अक्लमंदी नहीं है कि हम तलवारों, तीरों और बरछीयों से युक्त “कल्कि अवतार” का इन्तेजार करें।

हकीकत ये है कि पवित्र किताबों में “कल्कि अवतार” के स्पष्ट संकेत पैगम्बर मुहम्मद के ही हैं। इससे तात्पर्य मुहम्मद हैं जो मक्का में पैदा हुए। इसलिए सारे हिन्दू जहाँ कहीं भी हों इन को किसी कल्कि अवतार का अब इन्तजार नहीं करना है बताये हुए रास्ते पर चलना है जो बहुत ही सरल और सीधा हे जिसको पाकर स्वर्ग तक पंहुचा जा सकता हे ईश्वर सबको सही समझ दे।

मौत से हमेशा डरना चाईये

डरता हुँ मौत से मगर मरना ज़रूरी है ।

लरज़ता हुँ कफन से मगर पहन्ना ज़रूरी है ।

हो जाता हुँ गमग़ीन जनाज़े को देख कर ।

लेकिन मेरा जनाज़ा भी उठना ज़रूरी है ।

होती बड़ी कपकपी कबरों को देख कर
पर मुद्दतो इस कबर में रहना ज़रूरी है ।

मौत के आगोश में जिस दिन हमे सोना होगा ।

ना कोइ तकिया ना कोइ बिछोना होगा ।

साथ होंगे हमारे अमाल और कब्रिस्‍तान का छोटा सा
कोना होगा ।

मत करना कभी गुरूर अपने आप पर
ऐ इन्सान ।

अल्लाह ने तेरे जैसे ना जाने कितने मिट्टी से बना कर ।

मिट्टी में मिला दिए ।

अल्लाह हर गुनाहों की माफी माँगने पर माफ कर देता है सिवाय गीबत और चुगली पर
अल्लाह तब तक माफ नही फरमाता जब तक इन्सान
खुद उस से माफी ना माँगे जिस की गीबत की है ।

ये एक ऐसा गुनाह है जिसकी वजह से लोग काट काट
कर
जहन्नम में फैंके जाऐगें

📝मेहरबान अंसारी

Friday, 9 June 2017

सद्दाम ने अपने 26 लीटर ख़ून से लिखवाई थी कुरान'

सद्दाम ने अपने 26 लीटर ख़ून से लिखवाई थी कुरान'

रेहान फ़ज़लबीबीसी संवाददाता

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सद्दाम हुसैन को बड़े-बड़े महल बनाने के अलावा बड़ी-बड़ी मस्जिदें बनवाने का भी शौक था. एक इसी तरह की मस्जिद उन्होंने मध्य बग़दाद में बनवाई थी जिसे ' उम्म अल मारीक' नाम दिया गया था.

इसको ख़ास तौर से 2001 में सद्दाम हुसैन की सालगिरह के लिए बनवाया गया था. ख़ास बात ये थी कि इसकी मीनारें स्कड मिसाइल की शक्ल की थीं.

ये वही मिसाइलें थीं जिन्हें सद्दाम हुसैन ने खाड़ी युद्ध के दौरान इसराइल पर दग़वाया था.

सद्दाम हुसैन का महल देखना चाहेंगे?

सद्दाम और गद्दाफ़ी ज़िंदा होते तो अच्छा होताः ट्रम्प

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'ऑपरेशन डेसर्ट स्टॉर्म' जो 43 दिनों तक चला था, की याद दिलाने के लिए इन मीनारों की ऊँचाई 43 मीटर रखी गई थी.

सद्दाम हुसैन की जीवनी लिखने वाले कॉन कफ़लिन लिखते हैं, "सद्दाम की बनवाई एक मस्जिद में सद्दाम के ख़ून से लिखी गई एक कुरान रखी हुई है.

सीआईए एजेंट जिसने असली सद्दाम को पहचाना

सद्दाम हुसैन: 'क्रांतिकारी' बन गया था 'तानाशाह'

उसके सभी 605 पन्नों को लोगों को दिखाने के लिए एक शीशे के केस में रखा गया है. मस्जिद के मौलवी का कहना है कि इसके लिए सद्दाम ने तीन सालों तक अपना 26 लीटर ख़ून दिया था."

इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionसद्दाम हुसैन के 20 महलों में से एक अल-फ़ॉ

सद्दाम पर एक और किताब, 'सद्दाम हुसैन, द पॉलिटिक्स ऑफ़ रिवेंज' लिखने वाले सैद अबूरिश का मानना है कि सद्दाम की बड़ी-बड़ी इमारतें और मस्जिदें बनाने की वजह तिकरित में बिताया उनका बचपन था, जहाँ उनके परिवार के लिए उनके लिए एक जूता तक ख़रीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे.

दिलचस्प बात ये है कि सद्दाम अपने जिस भी महल में सोते थे, उन्हें सिर्फ़ कुछ घंटों की ही नींद लेनी होती थी. वो अक्सर सुबह तीन बजे तैरने के लिए उठ जाया करते थे.

इराक़ जैसे रेगिस्तानी मुल्क में पहले पानी धन और ताक़त का प्रतीक हुआ करता था और आज भी है.

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इसलिए सद्दाम के हर महल में फव्वारों और स्वीमिंग पूल की भरमार रहती थी. कफ़लिन लिखते हैं कि सद्दाम को स्लिप डिस्क की बीमारी थी. उनके डाक्टरों ने उन्हें सलाह दी थी कि इसका सबसे अच्छा इलाज है कि वो खूब चहलकदमी और तैराकी करें.

सद्दाम हुसैन के सारे स्वीमिंग पूलों की बहुत बारीकी से देखभाल की जाती थी. उनका तापमान नियंत्रित किया जाता था और ये भी सुनिश्चित किया जाता था कि पानी में ज़हर तो नहीं मिला दिया गया है.

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सद्दाम पर एक और किताब लिखने वाले अमाज़िया बरम लिखते हैं, "ये देखते हुए कि सद्दाम के शासन के कई दुश्मनों को थेलियम के ज़हर से मारा गया था, सद्दाम को अंदर ही अंदर इस बात का डर सताता था कि कहीं उन्हें भी कोई ज़हर दे कर न मार दे. हफ़्ते में दो बार उनके बग़दाद के महल में ताज़ी मछली, केकड़े, झींगे और बकरे और मुर्गे के गोश्त की खेप भिजवाई जाती थी."

वो आगे लिखते हैं, "राष्ट्पति के महल में जाने से पहले परमाणु वैज्ञानिक उनका परीक्षण कर इस बात की जाँच करते थे कि कहीं इनमें रेडियेशन या ज़हर तो नहीं है.''

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किताब में लिखा है, ''सद्दाम के महलों की संख्या 20 के करीब थी. उनमें कर्मचारी हर समय मौजूद रहते थे और सभी महलों में तीन वक्त का खाना बना करता था, चाहे उनमें सद्दाम रह रहे हों या नहीं."

सद्दाम की कमज़ोरी थी कि वो हमेशा बहुत अच्छा दिखना चाहते थे. इसलिए बाद में उन्होंने परंपरागत ज़ैतूनी रंग की सैनिक वर्दी पहनना छोड़ कर सूट पहनना शुरू कर दिया था.

ऐसा उन्होंने तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफ़ी अन्नान की सलाह पर किया था जिनका मानना था कि सूट पहनने से विश्व नेता के रूप में उनकी छवि बेहतर होगी.

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सद्दाम हमेशा अपने बालों में ख़िज़ाब लगाते थे और लोगों के सामने पढ़ने वाला चश्मा लगा कर कभी सामने नहीं आते थे. जब वो भाषण देते थे तो उनके सामने कागज़ पर बड़े बड़े शब्द लिखे होते थे- एक पन्ने पर सिर्फ़ दो या तीन लाइनें.

सद्दाम इस बाद का भी ख़्याल रखते थे कि चलते समय कुछ कदमों से ज़्यादा उनकी फ़िल्म न उतारी जाए.

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कॉन कफ़लिन लिखते हैं कि 'सद्दाम दिन में कई बार छोटी छोटी झपकियाँ ले लिया करते थे. कई बार तो ऐसा होता था कि वो बीच बैठक से उठ कर बगल वाले कमरे में चले जाते थे और एक छोटी नींद ले कर आधे घंटे बाद तरोताज़ा निकलते थे.'

सद्दाम को टेलीविज़न देखने का भी शौक था और वो ज़्यादातर सीएनएन, बीबीसी और अलजज़ीरा देखा करते थे.

उन्हें रोमांचक अंग्रेज़ी थ्रिलर्स देखने का भी शौक था और अंग्रेज़ी फ़िल्म 'द डे ऑफ़ द जैकाल' उनकी पसंदीदा फ़िल्म थी.

इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionमंत्रिमंडल की बैठक लेते हुए सद्दाम हुसैन

सन 2002 का शुरुआत में सद्दाम ने कैबिनेट बैठक के दौरान अपने एक मंत्री को अपनी घड़ी देखते हुए देख लिया.

जब बैठक समाप्त हो गई तो उन्होंने उस मंत्री को रुकने के लिए कहा. उन्होंने उनसे पूछा, 'क्या आपको बहुत जल्दी है?'

जब उस मंत्री ने कहा कि ऐसी बात नहीं है तो सद्दाम ने उन्हें डांटते हुए कहा कि ऐसा कर आपने मेरा अपमान किया है.

कफ़लिन लिखते हैं, "सद्दाम ने आदेश दिया कि उन मंत्री को उसी कमरे में दो दिनों तक कैद रखा जाए. वो मंत्री बैठक कक्ष में दो दिनों तक कैद रहा और उसे लगता रहा कि उसे कभी भी बाहर ले जाकर गोली मारी जा सकती है. आखिर में सद्दाम ने उनके प्राण तो बख्श दिए लेकिन उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा."

इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionसद्दाम हुसैन पत्नी साजिदा और अपने बच्चों के साथ

सद्दाम के लिए उनके विरोधियों से ज़्यादा उनका खुद का परिवार परेशानी का कारण था और उसमें बहुत बड़ी भूमिका थी उनकी अपनी पत्नी साजिदा के प्रति बेवफ़ाई की.

1988 के आसपास सद्दाम को बहुत बड़े पारिवारिक संकट से गुज़रना पड़ा जब उनके इराकी एयरवेज़ के महानिदेशक की पत्नी समीरा शाहबंदर से संबंध हो गए.

समीरा लंबी थी, हसीन थीं और उनके सुनहरे रंग के बाल भी थे और सबसे बड़ी बात ये थी कि वो शादीशुदा थीं.

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सैद अबूरिश लिखते हैं, "कई सालों तक राष्ट्रपति महल में काम करने वाले एक अधिकारी ने मुझे बताया था कि सद्दाम को शादीशुदा औरतों से संबंध बनाना ख़ासतौर से पसंद था. ये उनके पतियों को ज़लील करने का उनका अपना तरीका हुआ करता था."

सद्दाम की इस तरह की रंगरेलियों का इंतेज़ाम उनका अंगरक्षक कामेल हना जेनजेन किया करता था.

जेनजेन बीस सालों तक सद्दाम का निजी अंगरक्षक था. दिलचस्प बात ये थी कि जेनजेन सद्दाम के रसोइए का बेटा था.

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उसके बहुत सारे कामों में एक काम सद्दाम को दिए जाने वाले भोजन को खा कर देखना भी था कि उसमें कहीं ज़हर तो नहीं मिलाया गया था.

सद्दाम का मानना था कि उनका रसोइया उनके खाने में इसलिए कभी ज़हर नहीं मिलाएगा क्योंकि उसके खुद के बेटे को उसे पहले चखना होता था.

सद्दाम को फांसी दिए जाने पर रोए थे अमरीकी सैनिक

सद्दाम को फांसी दिए जाने पर रोए थे अमरीकी सैनिक

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सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगाए गए बारह अमरीकी सैनिक उनकी पूरी ज़िंदगी के बेहतरीन मित्र न सही, लेकिन उनके आख़िरी मित्र ज़रूर थे.

सद्दाम के आख़िरी क्षणों तक साथ रहे 551 मिलिट्री पुलिस कंपनी से चुने गये इन सैनिकों को 'सुपर ट्वेल्व' कह कर पुकारा जाता था.

इनमें से एक विल बार्डेनवर्पर ने एक किताब लिखी है, 'द प्रिज़नर इन हिज़ पैलेस, हिज़ अमैरिकनगार्ड्स, एंड व्हाट हिस्ट्री लेफ़्ट अनसेड' जिसमें उन्होंने सद्दाम की सुरक्षा करते हुए उनके अंतिम दिनों के विवरण को साझा किया है.

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एजेंट जिसने असली सद्दाम को पहचानासद्दाम हुसैन- 'क्रांतिकारी' बन गया था 'तानाशाह'सद्दाम हुसैन को हटाना सही- ब्लेयरइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionविल बार्डेनवर्पर, जो सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में रखे गए 'सुपर ट्वेल्व' अमरीकी सैनिकों की टीम का हिस्सा थे.

बार्डेनवर्पर मानते हैं कि जब उन्होंने सद्दाम को उन लोगों के हवाले किया जो उन्हें फांसी देने वाले थे, तो सद्दाम की सुरक्षा में लगे सभी सैनिकों की आँखों में आँसू थे.

'दादा की तरह दिखते थे सद्दाम'

बार्डेनवर्पर अपने एक साथी एडम रोजरसन के हवाले से लिखते हैं कि, 'हमने सद्दाम को एक मनोविकृत हत्यारे के रूप में कभी नहीं देखा. हमें तो वो अपने दादा की तरह दिखाई देते थे.'

सद्दाम पर अपने 148 विरोधियों की हत्या का आदेश देने के लिए मुक़दमा चलाया गया था.

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उन्होंने इराकी जेल में अपने अंतिम दिन अमरीकी गायिका मेरी जे ब्लाइज़ा के गानों को सुनते हुए बिताए. वो अपनी खचाड़ा एक्सरसाइज़ बाइक पर बैठना पसंद करते थे, जिसे वो 'पोनी' कह कर पुकारा करते थे.

उनको मीठा खाने का बहुत शौक था और वो हमेशा मफ़िन खाने के लिए आतुर रहते थे.

बार्डेनवर्पर लिखते हैं कि अपने अंतिम दिनों में सद्दाम का उन लोगों के प्रति व्यवहार बहुत विनम्र था और वो ये आभास कतई नहीं होने देते थे कि वो अपने ज़माने में बहुत क्रूर शासक हुआ करते थे.

कास्त्रो ने सिगार पीना सिखाया

सद्दाम को 'कोहिबा' सिगार पीने का शौक था, जिन्हें वो गीले वाइप्स के डिब्बे में रखा करते थे. वो बताया करते थे कि सालों पहले फ़िदेल कास्त्रो ने उन्हें सिगार पीना सिखाया था.

इमेज कॉपीरइटAFPImage captionफ़िदेल कास्त्रो और सद्दाम हुसैन

बार्डेनवर्पर ने वर्णन किया है कि सद्दाम को बागबानी का बहुत शौक था और वो जेल परिसर में उगी बेतरतीब झाड़ियों तक को एक सुंदर फूल की तरह मानते थे.

सद्दाम अपने खाने के बारे में बहुत संवेदनशील हुआ करते थे.

वो अपना नाश्ता टुकड़ो में किया करते थे. पहले ऑमलेट, फिर मफ़िन और इसके बाद ताज़े फल. अगर गलती से उनका ऑमलेट टूट जाए, तो वो उसे खाने से इंकार कर देते थे.

बार्डेनवर्पर याद करते हैं कि एक बार सद्दाम ने अपने बेटे उदय की क्रूरता का एक वीभत्स किस्सा सुनाया था जिसकी वजह से सद्दाम आगबबूला हो गए थे.

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हुआ ये था कि उदय ने एक पार्टी में गोली चला दी थी, जिसकी वजह से कई लोग मारे गए थे और कई घायल हो गए थे.

इस पर सद्दाम इतने नाराज़ हुए थे कि उन्होंने हुक्म दिया कि उदय की सारी कारों में आग लगा दी जाए.

सद्दाम ने ठहाका लगाते हुए ख़ुद बताया कि किस तरह उन्होंने उदय की मंहगी रॉल्स रॉयस, फ़रारी और पोर्श कारों के संग्रह में आग लगवा दी थी और उससे उठी लपटों को निहारते रहे थे.

दिलफेंक सद्दाम

सद्दाम की सुरक्षा में लगे एक अमरीकी सैनिक ने उनको बताया था कि उसके भाई की मौत हो गई है. यह सुनकर सद्दाम ने उसे गले लगाते हुए कहा था, 'आज से तुम मुझे अपना भाई समझो.'

सद्दाम ने एक और सैनिक से कहा था कि अगर मुझे मेरे धन का इस्तेमाल करने की अनुमति मिल जाए, तो मैं तुम्हारे बेटे की कालेज की शिक्षा का ख़र्चा उठाने के लिए तैयार हूँ.

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एक रात सब ने बीस साल के सैनिक डॉसन को एक ख़राब नाप के सूट में घूमते हुए देखा. पता चला कि डॉसन को सद्दाम ने अपना वो सूट तोहफ़े में दिया है.

बार्डेनवर्पर लिखते हैं कि, 'कई दिनों तक हम डॉसन पर हंसते रहे, क्योंकि वो उस सूट को पहन कर इस तरह चला करता था, जैसे वो किसी फ़ैशन शो की 'कैटवॉक' में चल रहा हो.'

सद्दाम और उनकी सरक्षा में लगे गार्डों के बीच दोस्ती पनपती चली गई, हालांकि उन्हें साफ़ आदेश थे कि सद्दाम के नज़दीक आने की बिल्कुल भी कोशिश न की जाए.

हुसैन को उनके मुक़दमे के दौरान दो जेलों में रखा गया था.

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एक तो बग़दाद में अंतर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल का तहख़ाना था और दूसरा उत्तरी बग़दाद में उनका एक महल था जो कि एक द्वीप पर था, जिस पर एक पुल के ज़रिए ही पहुंचा जा सकता था.

बार्डेनवर्पर लिखते हैं, 'हमने सद्दाम को उससे ज़्यादा कुछ नहीं दिया जिसके कि वो हक़दार थे. लेकिन हमने उनकी गरिमा को कभी आहत नहीं किया.'

स्टीव हचिंसन, क्रिस टास्कर और दूसरे गार्डों ने एक स्टोर रूम को सद्दाम के दफ़्तर का रूप देने की कोशिश की थी.

'सद्दाम का दरबार' बनाने की कोशिश

सद्दाम को 'सरप्राइज़' देने की योजना बनाई गई. पुराने कबाड़ ख़ाने से एक छोटी मेज़ और चमड़े के कवर की कुर्सी निकाली गई और मेज़ के ऊपर इराक का एक छोटा सा झंडा लगाया गया.

इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionसद्दाम हुसैन को अमरीकी सैनिकों ने एक बंकर से गिरफ़्तार किया था.

बार्डेनवर्पर लिखते हैं, 'इस सबके पीछे विचार ये था कि हम जेल में भी सद्दाम के लिए एक शासनाध्यक्ष के दफ़्तर जैसा माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे थे. जैसे ही सद्दाम उस कमरे में पहली बार घुसे, एक सैनिक ने लपक कर मेज़ पर जम आई धूल को झाड़न से साफ़ करने की कोशिश की.'

सद्दाम ने इस 'जेस्चर' को नोट किया और वो कुर्सी पर बैठते हुए ज़ोर से मुस्कराए.

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सद्दाम रोज़ उस कुर्सी पर आकर बैठते और उनकी सुरक्षा में लगाए गए सैनिक उनके सामने रखी कुर्सियों पर बैठ जाते. माहौल ये बनाया जाता जैसे सद्दाम अपना दरबार लगा रहे हों.

बार्डेनवर्पर बताते हैं कि सैनिकों की पूरी कोशिश होती थी कि सद्दाम को खुश रखा जाए. बदले में सद्दाम भी उनके साथ हंसी मज़ाक करते और वातावरण को ख़ुशनुमा बनाए रखते.

कई सैनिकों ने बाद में बार्डेनवर्पर को बताया कि उन्हें पूरा विश्वास था कि 'अगर उनके साथ कुछ बुरा हुआ होता, तो सद्दाम उन्हें बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देते.'

सद्दाम को जब भी मौका मिलता, वो अपनी रक्षा कर रहे सैनिकों से उनके परिवार वालों का हालचाल पूछते.

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इस किताब में सबसे चकित कर देने वाला किस्सा वो है जहाँ ये बताया गया है कि सद्दाम के मरने पर इन सैनिकों ने बाक़ायदा शोक मनाया था, जबकि वो अमरीका के कट्टर दुश्मन माने जाते थे.

उन सैनिकों में से एक एडम रौजरसन ने विल बार्डेनवर्पर को बताया कि 'सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद हमें लगा कि हमने उनके साथ ग़द्दारी की है. हम अपने आप को उनका हत्यारा समझ रहे थे. हमें ऐसा लगा कि हमने एक ऐसे शख़्स को मार दिया जो हमारे बहुत नज़दीक था.'

सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद जब उनके शव को बाहर ले जाया गया था तो वहाँ खड़ी भीड़ ने उनके ऊपर थूका था और उसके साथ बदसलूकी की थी.

अमरीकी सैनिक हैरान थे

बार्डेनवर्पर लिखते हैं कि ये देख कर सद्दाम की अंतिम समय तक सुरक्षा करने वाले ये 12 सैनिक भौंचक्के रह गए थे.

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उनमें से एक शख़्स ने भीड़ से दो-दो हाथ करने की कोशिश भी की थी, लेकिन उनके साथियों ने उन्हें वापस खींच लिया था.

उन सैनिकों में से एक स्टीव हचिन्सन ने सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद अमरीकी सेना से इस्तीफ़ा दे दिया था.

हचिन्सन इस समय जॉर्जिया में बंदूकों और टैक्टिकल ट्रेनिंग का कारोबार करते हैं. उन्हें अभी भी इस बात का रंज है कि उन्हें उन इराकियों से न उलझने का आदेश दिया गया जो सद्दाम हुसैन के शव का अपमान कर रहे थे.

सद्दाम अपने अंतिम दिनों तक ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि उन्हें फांसी नहीं होगी.

इमेज कॉपीरइटWILLImage captionलेखक और पूर्व अमरीकी सैनिक विल बार्डेनवर्पर

एक सैनिक एडम रोजरसन ने बार्डेनवर्पर को बताया था कि एक बार सद्दाम ने उनसे कहा था कि उनका किसी महिला से प्यार करने का दिल चाह रहा है. जब वो जेल से छूटेंगे तो एक बार फिर से शादी करेंगे.

30 दिसंबर, 2006 को सद्दाम हुसैन को तड़के तीन बजे जगाया गया.

उन्हें बताया गया कि उन्हें थोड़ी देर में फांसी दे दी जाएगी. ये सुनते ही सद्दाम के भीतर कुछ टूट गया. वो चुपचाप नहाए और अपने आप को फांसी के लिए तैयार किया.

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उस समय भी उनकी एक ही चिंता थी, 'क्या सुपर ट्वेल्व को नींद आई?'

अपनी फांसी से कुछ मिनटों पहले सद्दाम ने स्टीव हचिन्सन को अपनी जेल कोठरी के बाहर बुलाया और सीखचों से अपना हाथ बाहर निकाल कर अपनी 'रेमंड वील' कलाई घड़ी उन्हें सौंप दी.

जब हचिन्सन ने विरोध करना चाहा तो सद्दाम ने ज़बरदस्ती वो घड़ी उनके हाथ में पहना दी. हचिन्सन के जॉर्जिया के घर में एक सेफ़ के अंदर वो घड़ी अब भी टिक-टिक कर रही है.