Saturday, 10 June 2017

मौत से हमेशा डरना चाईये

डरता हुँ मौत से मगर मरना ज़रूरी है ।

लरज़ता हुँ कफन से मगर पहन्ना ज़रूरी है ।

हो जाता हुँ गमग़ीन जनाज़े को देख कर ।

लेकिन मेरा जनाज़ा भी उठना ज़रूरी है ।

होती बड़ी कपकपी कबरों को देख कर
पर मुद्दतो इस कबर में रहना ज़रूरी है ।

मौत के आगोश में जिस दिन हमे सोना होगा ।

ना कोइ तकिया ना कोइ बिछोना होगा ।

साथ होंगे हमारे अमाल और कब्रिस्‍तान का छोटा सा
कोना होगा ।

मत करना कभी गुरूर अपने आप पर
ऐ इन्सान ।

अल्लाह ने तेरे जैसे ना जाने कितने मिट्टी से बना कर ।

मिट्टी में मिला दिए ।

अल्लाह हर गुनाहों की माफी माँगने पर माफ कर देता है सिवाय गीबत और चुगली पर
अल्लाह तब तक माफ नही फरमाता जब तक इन्सान
खुद उस से माफी ना माँगे जिस की गीबत की है ।

ये एक ऐसा गुनाह है जिसकी वजह से लोग काट काट
कर
जहन्नम में फैंके जाऐगें

📝मेहरबान अंसारी

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