कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ! वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए !!मेहरबान कैरानवी
8791477582
No comments:
Post a Comment